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मजाक में सीखा नोट बनाना, 7.5 लाख रु. के नकली नोट चलाये
उज्जैन | पीथमपुर में किराए का रूम लेकर नकली नोट छाप रहे पांच बदमाशों को रविवार को क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया है। बदमाशों ने दस लाख के नकली नोट तैयार किए थे। चार लाख के नोट सूरत भेज दिए, वहीं करीब साढ़े तीन लाख के नोट बाजार में खपा दिए हैं। शेष ढाई लाख के नकली नोट टीम ने जब्त किए हैं। गिरोह का सरगना 10वीं पास है, वह दो मिनट में दो हजार का नोट तैयार कर देता है। उनके पास से लैपटॉप, प्रिंटर, कटर, स्याही, कागज जब्त किए हैं। डीआईजी हरिनारायणाचारी मिश्र ने बताया कि पकड़े गए नरेश पंवार निवासी पीसी सेठी नगर मुख्य आरोपी है। आरोपियों में नरेन्द्र उर्फ नंदू उज्जैन के बड़नगर का निवासी है। जिससे 32 हजार 500 रुपए के नकली नोट बरामद हुए हैं। उज्जैन में भी क्राइम ब्रांच की टीम नकली नोटों के बारे में पता लगा रही है। वहीं राजेश पिता गोवर्धनलाल निवासी खातीपुरा, चंद्रशेखर पिता बाबूलाल परमार निवासी राजनगर, रामेश्वर उर्फ राजू उर्फ विजय परिहार निवासी बेटमा को गिरफ्तार किया है। एक साथी अभिषेक चौहान की तलाश है। नकली नोट तैयार करने के लिए वह मुंबई से कागज और स्याही लेकर आता था।
मजाक में सीखा नोट बनाना
पूछताछ में नरेश ने बताया कि दोस्तों के साथ मजाक में नोट स्केन कर नकली नोट बनाना सीखा। उसके बाद नोट की स्केनिंग कर नकली नोट बनाने लगा। 2005 में एमआईजी थाने में नकली नोट के मामले में बंद हुआ। तब 40 हजार के नकली नोट बरामद हुए थे। चार महीने जेल में रहा फिर जमानत पर बाहर आ गया। इसके बाद न्यायालय ने सात साल की सजा सुनाई, सजा पूरी होने के बाद जेल से रिहा हो गया। 2011 में उसके पिता और भाई शैलेंद्र भी नकली नोट बनाने के मामले में हीरा नगर थाने में गिरफ्तार हुए। उनके पास 1 लाख 10 हजार के नोट मिले थे। 2012 में अपने दोस्त शिवेंद्र के साथ विजय नगर थाने में नकली नोट के मामले में बंद हुआ। तब वह लोगों से 10 हजार के असली नोट लेकर उसके बदले 30 हजार रुपए के नकली नोट तैयार करके देता था।
ऐसे छापते थे नकली नोट
आरोपी दो तरीके से नकली नोट छापते थे। एक पेज पर तीन नोट को चिपकाते थे। वहीं एक तरफ के पेज का कलर प्रिंटआउट निकालते थे उसके बाद कलर प्रिंट आउट वाले पेपर को बल्ब के उजाले में रखकर पीछे की तरफ से पिछले हिस्से को छापने के लिए मार्जिन बनाते थे। मार्जिन सेट होने के बाद मार्जिन के अंदर नोट को सेलो टेप से चिपका देते थे। टोनर और कलर के माध्यम से नोट पर आए प्रिंट को चमकाते थे फिर गांधीजी की वाटर इमेज बनाते थे। वहीं दूसरा तरीका था नोट को स्केन कर मार्जिन सेट करके आगे-पीछे की साइड की कॉपी कर के मार्जिन अनुसार प्रिंट आउट निकाल लेते थे उसके बाद पेपर कटर के माध्यम से नोट के साइज के मुताबिक काट लेते थे।
सूरत में खोलने वाला था ब्रांच
पूछताछ में पता चला वह आर्डर पर भी नकली नोट तैयार करता था। सूरत में धनराज नामक के एक व्यक्ति के माध्यम से उसने वहां 4 लाख रुपए के नकली नोट चलाए थे। धनराज के ही माध्यम से वह सूरत में भी नकली नोट तैयार करने की ब्रांच खोलने वाला था। पकड़ाने पर उसने पुलिस अधिकारियों को यहां तक कह दिया कि अगर बाजार में नकली नोट मिले, तो समझ लेना नरेश जेल से बाहर आ गया है।
अंधेरे का उठाते थे फायदा
आरोपी भीड़-भाड़ वाली जगह जैसे- शराब के अड्डे, पेट्रोल पंप, बाजारों और ढाबों पर नकली नोट चलाते थे। वे अंधेरे का फायदा उठाकर लोगों को नकली नोट देते थे। ताकि नोट की पहचान न हो सके। नोट की सीरीज एक ही होने से एक से ज्यादा नोट बहुत कम ही चला पाते थे।